Friday, August 30

मेरी तीन तितलियाँ

सुबह- सुबह  उठना  और  7 बजे  स्कूल  पहुंचना  किसी  जंग  लड़ने  से  कम  नही  था हमारे  लिए  . अगर  5 मिनट  लेट  हो  भी  गये  तो   लेट  कमर्स   की  पंक्ति (लाइन )  में  खड़ा  होना  पड़ता  था , लेट   कमर्स  को  टाइम से स्कूल पहुँचने  वाले  बच्चे  ऐसे  देखते,  जैसे  हमने  किसी की  अम्मा का  खून   किया  हो.  जल्दी  आने  वाले  अपनी  ईमानदारी  की   चमक आँखों में लिए मन ही मन मुस्काते. मेरी  3 सहेलिया  अक्सर  मेरे  घर  के  बाहर  खड़ी  हो  कर  आवाज़  लगाया   करती  थी  “ जल्दी  आ, आज फिर तेरी वजह  से लेट  हो. और  मैं  अपनी  दो  चोटियों  में  नीले  रिबन  लगाने  की  जुस्तुजू  में  लगी  रहती, चोटी का आकार जब बिगड़ने लगता तो किचन में मम्मी के खाना बनाने की प्रक्रिया में खलल पैदा करती . मम्मी एक हाथ से मेरी चोटी पकड़ती और दूसरे हाथ से करछी चलाती तो कभी चिमठे से रोटी सेकती..स्कूल में  लंच  के बाद  कभी  क्लास  में वापस  जाने  का  मन  ही  नही  होता था ऊपर  से  नींद  के  झोंके  बार  बार  आते  थे. चौथी  क्लास  में  एक  दिन  मैंने,  दूसरे  बच्चों  की  तरह   एक  काण्ड  कर  दिया  था . मैं  स्कूल  के  पीछे  की   दीवार  टापकर लंच    टाइम  में  घर  आ गई  थी .. ये करना    मुझ अकेली  के बस की बात नहीं थी, पहली बार था ना इसलिए  . दूसरे  बच्चों  ने  बिना  किसी  लालच  के  मेरी  खूब  मदद की   . मैं  दीवार  के  दूसरी  तरफ  थी  तब  नन्हें  फरिश्तों  ने   ही  मेरा  स्कूल  बैग  दीवार  के  पार  मुझे कैच कराया   था . ऐसा  रोज  होता   था  लंच  के  बाद  जरुर  2-3 बच्चे  गायब   हो   जाते  थे . अध्यापकों  के  लिए  40-50 बच्चों  में  से   यह   जानना   मुश्किल  था  कि  उनका  कौन  सा होनहार  स्टूडेंट  गायब  हुआ  है . खैर   मैं  जैसे ही   घर  आई  मेरी  सारी  ख़ुशी  –गम  में  बदल  गयी . मम्मी  किचन  में  थी , उन्होंने  पूछा  आज  तो  लास्ट  वर्किंग  डे  भी  नहीं  है  जो  आधी  छुट्टी  हो  गयी . मम्मी  ने  ज्यादा  दवाब  दिया  तो  मैंने  सच -सच  बता  दिया  कि  मैं  स्कूल  कि  दीवार  टाप  के  आई  हूँ . मम्मी  ने  सुनते  के  साथ  ही  जोर  का  तमाचा  मेरे  गाल  पर  जड़   दिया . वो  मेरा  हाथ  पकड़  कर  वापस  स्कूल  ले   गयी  और  कहा  आज  के  बाद  मैंने  ऐसा  किया  तो  वो  प्रिंसिपल  और  मेरे  टीचर्स  से  मेरी  शिकायत  कर  देंगी . स्कूल  की पूरी  छुट्टी  के  बाद , घर  आने  पर  मम्मी  ने  मुझे  खूब   प्यार  किया . मैं  डर  रही  थी  कि   मम्मी  जरुर  पापा  को  बता  देंगी  पर  उन्होंने  पापा  को  कुछ  नहीं  बताया.  उस  दिन  मम्मी  के  ऊपर  बहुत  गुस्सा  आया  था , पहले  तो  झापड़   मारो  फिर  प्यार करो ...  ..  अब  लगता  है  मम्मी  ने  सही  किया  था .उस  दिन  के  बाद  मैंने  कभी  स्कूल  की  दीवार  नहीं  टापी . ऐसा  नहीं  है  मैं  पढ़ाई  में  अच्छी  नहीं . मैं  अपनी पहली  क्लास  से  पांचवी  क्लास  तक  "फर्स्ट - सेकंड - थर्ड"  में  से  कोई  ना  कोई  पोजीशन  जरुर  लाती   थी . यकीन  ना  हो  तो  नेक्स्ट  टाइम  अपनी  सारी  मार्क्स  शीट  स्कैन  करके  यहाँ  पोस्ट  कर  दूंगी .
पुराना  स्कूल  बदल  गया . अब  मैं  हाई -स्कूल  के  गंगा -सागर  की  एक  मछली  थी .  दोस्त  भी  बदल  गये   और  स्कूल  का  रास्ता  भी , लेकिन  मेरी  लेट  होने  की  आदत  नहीं  बदली . मम्मी  कहती  थी  अब  तो  सुधर  जा  बड़ी  हो  गयी  है  तू , अच्छा  लगता  है रोज  बाकी  बच्चे  टाइम  से  आ  कर  घर  के  बाहर  इंतज़ार  करते  है . तेरी  वजह  से  वो   भी  लेट   हो  जाते  है .  पर  बुरी  आदतें  कहा  जल्दी  से  पीछा  छोड़ती  है . छोटी  थी तब ढ़ेरो  बहाने  बनाए , कभी  पेट   दर्द   का   बहाना , कभी  सर  दर्द  का  बहाना,  कभी  यह - मेरी  फ्रेंड  नोट  बुक  ले  गयी  है , आज  वो  नहीं   आएगी  और  मैं  स्कूल  गयी  तो   टीचर  से  उलटे  हाथ  पर  10-10 डंडे  खाने  पड़ेंगे, उन्हें  क्या  आप  जा  कर  बताओगे  कि  मैंने  होमवर्क  किया  था  पर  नोट  बुक  मेरी  फ्रेंड  ले  गयी .  अब  छुट्टी  का  कोई  बहाना  नहीं  था . सिर्फ  क्लास  के  पीरियड   और  लंच  टाइम  में  अधूरा  काम  पूरा  करना  होता  था . घर  आने  पर  भी  सुकून  कहाँ   था , श्याम  को  फिर  ट्यूशन  जाना  पड़ता   था .
 पिछले  कुछ  दिनों  से  मैं  टाइम  से  पहले  ही  स्कूल   पहुँच  जाती  थी .  सुबह  घर  से  निकलते  वक़्त  मेरा  हुलियां  कुछ  यू  होता  था -  “बड़ी - बड़ी  बाजुओ  वाली  शर्ट , घुटनों  से   नीचे  तक  की लम्बी  स्कर्ट  और  घुटनों  को छूते जुराब  इसके  अलावा  2  चोटियां वो भी  ढ़ीली -ढ़ीली , जो  बस  प्रे  टाइम  तक  के  लिए  होती  थी . स्कूल  पहुँचने  तक  शर्ट  की  बाजुएँ  काफी  ऊपर   तक  पहुँच   जाती  थी  स्कर्ट  कमर से   फोल्ड  हो  जाती और  जुराब  जूतों  को छूते. और हां  आँखों  me  काल  काजल  भी  डलना  शुरू  हो  गया  था . जिस  दिन  मैं  लेट  हो  जाती  उस  दिन  लगता  शिट .. और  तूफ़ान  की  रफ़्तार  पकड़  कर   हवाओं   से  बातें  करती  हुई  डेस्टिनेशन  तक  पहुँच  जाती  थी . पापा  और  उनकी  बीके  ने  मुझे  स्कूल  जल्दी  पहुंचाने   में  मेरी  बहुत  मदद  की . पर  मुझे  अब  दोस्तों  के  साथ  या  अकेले  स्कूल  जाना  पसंद  था . ये  सब  बिना  बात  के  नहीं   हो  रहा  था . अच्छी खासी  वजह  थी  इसके  पीछे . असेम्बली   के  बाद  मैं  क्लास  में  घुसने से पहले  10-15 मिनट  तक  स्कूल की तीसरी  मंजिल    की  बड़ी - सी  जाली  वाली  खिड़की  के  पास  खड़ी  होती  थी . उस  खिड़की  से  दूर  एक  बड़ा-  सा  मकान  था , मकान  की  बड़ी - सी  छत  थी   और   बड़ी - सी  छत  पर  बड़ी - सी  ख़ुशी  थी,  ख़ुशी  में  बड़ी -सी मुस्कान  थी  और  बड़ी  -सी  मुस्कान  में  था  “वो  पागल लड़का ”. डिस्टेंस  बहुत  था  मेरे  और  उसके  बीच  लेकिन  दूर  से  उसके  वहां   होने - भर  के  एहसास   से  ही  दिन  बन  जाता  था . उसकी  धुंधली  सी  छवि  के  दर्शन  होने  के  बाद , पेट  से  उड़ती  तिलती  पूरा  दिन  मेरे  आस  पास  घूमती   रहती  थी .
मैं  2 स्टेप  पीछे  जाना  चाहूंगी  . दरअसल   मैं  और  वो  एक  ही  ट्यूशन  में  साथ - साथ  पढ़ते  थे . गढ़ित मेरी  फेवरेट  थी  इसलिए  इसमें  ज्यादा  से  ज्यादा  नंबर  लाने  के  चक्कर में  मैंने  मम्मी  से  कह  कर  ट्यूशन  जाना  शुरू  किया  था . मैं  दसवीं  में  थी  और  वो  ग्यारवीं  में  साइंस स्ट्रीम    से . मेरी  क्लास के ठीक बाद उसकी क्लास  शुरू  होती  थी . ट्यूशन  में  बहुत  सी  लड़कियां  उसके  पीछे  पागल  थी  मैं  भी   उनमें   से  एक  थी . वो  था  ही  इतना  शरारती  और  इंटेलीजेंट  ( बिलकुल  मेरी  तरह ) कि, उस  पर  तो कोई  भी  लट्टू  हो  जाए . मेरी  पहली  तितली  ट्यूशन   की न्यू इयर  पार्टी  पर  उड़ी  थी , जब  मैंने  उसे  पहली  बार  देखा  था . वो  केमिस्ट्री  की  कोई कविता   सुना  रहा   था  जिस  पर  सबने  तालियाँ  बजाई . उस कविता  में  उसने  किसी  लड़की  की  सुन्दरता  का  बखान  अपनी  केमिस्ट्री  की  उस  कविता  से  किया  था .  उस  लड़के  ने  अपनी  काल्पनिक  परी  की  नांक  को  अपनी  केमिस्ट्री  की  टेस्ट  ट्यूब   बताया  और  केमिकल्स  को  उस  परी  की  खुशबू , ऐसे  करते  करते  उसने  कार्बनडाई  आक्साइड और  हाईड्रोजन  के  साथ  अपनी कल्पनाओं से बाहर निकलती किसी लड़की की  तारीफ़ की थी.  मैं  पहली नज़र में  ही  उसपर कायल  थी . उसने  कविता  सुनाते   -सुनाते    मेरी  तरफ  देखा  था और  मैं  शर्म   से  पानी - पानी  हो  गई  थी . फिर  मैंने  सबके  साथ  न्यू  इयर  पार्टी  में  डांस  भी  किया  और  जहाँ  तक  मेरी  नॉलेज  का  सवाल  है ,डांस   के बाद  वो  भी  मुझ पर कायल  था . बस  वही  से  तितलियाँ  उड़ने   का   सिलसिला  शुरू  हुआ  था . हम   ट्यूशन  में  एक  दूसरे  की   एक  झलक  देख  कर  खुश  हो  जाते  थे . एक  दिन  मैं  स्कूल  की तीसरी मंजिल की   बड़ी  सी  खिड़की  के  पास  खड़ी  थी  , मुझे  अचानक   वो  दिखा . वो  सो  कर  ही  उठा  था  और  किसी  काम   से  छत  पर  आया  था . मैंने  उसे  एक  बार  में  ही  पहचान  लिया  था  क्युकी  उन  दिनों  आसमान  साफ़  था .  मेरी  दूसरी  तितली  खिड़की  से उसे उस पार देख कर  ही  उड़ी  थी . मैं  चाहती  थी  वो  मेरी  तरफ  देखे , मैं  पागल  हुए  जा  रही  थी . मैंने  2 सेकंड के  लिए  आँखें  बंद  करी और कहा   “ प्लीज गॉड वो  मेरी  तरफ  देख  ले ” हुआ  ये ,  आँखें  खुलने  के  2 सेकंड  बाद  ही  उसने  खिड़की  की  तरफ  देखा  मैंने  तुरंत  अपना  हाथ  हिला कर उसे "हाय " किया. उसने  गौर  से  खिड़की  के  इस  पार  देखा , उसे  यकीन  हो  गया  था  ये  मैं  ही  हूँ . मेरी  तरफ  से  "हाय"  का  ये  पहला  फ़रमान  था . क्या  करू  जस्बाती  हो  गयी  थी . जैसे कछुआ अपने सारे अंगों को अपने अन्दर समेत लेता है ठीक वैसे ही मैं भी उसके प्रति अपनी भावनाओं को समेटना चाहती थी पर ऐसा हुआ नहीं.  अब  मेरे  लिए  ट्यूशन  और  स्कूल  में पढ़ाई  के  अलावा  कुछ और  भी  था "वो कुछ" वही पागल लड़का था . पहले  स्कूल  में  फिर  ट्यूशन  में  उसकी  एक  झलक  काफी  थी . इसी  जुस्तजू  के  साथ  पूरा  एक  साल  हो  गया  फिर  से  न्यू  इयर   दस्तक  देने  वाला  था . पर   इस  बार  कुछ  अलग  था.  उसने  ट्यूशन  की  न्यू  इयर  पार्टी  में  अपनी  एक  दोस्त  के  हाथ  मुझे  ग्रीटिंग  कार्ड  भेजा  था  और  साथ  में  एक  प्यारा  सा  गुलाब . इस  न्यू  इयर  पर   मैं  ग्यारवीं  में  थी  और  वो  बारवीं  में . ग्रीटिंग  और  रेड रोज़  देखते  के  साथ  ही  मेरी  सिट्टी -पिट्टी  गुल  हो  गयी . मैंने  उसकी  दोस्त  को  कहा  “ मुझे  नहीं  लेना  ग्रीटिंग  और  रोज़ , वापस  उसी  को  दे  दो  “. पार्टी  के  बाद  सब  घर  जा  रहे  थे . मैं  नीरस  सी  मुस्कान  लिए  सबको  हैप्पी  न्यू  इयर  बोल  के  सीढ़ियों  से  जल्दी  जल्दी  उतरने  लगी . अचानक   किसी  ने  मेरा  रास्ता  रोका , सीढ़ियों   पर  “लक्की” था . उसने  बड़े प्यार से  ग्रीटिंग और रेड रोज़ देते हुए कहा  " हैप्पी न्यू इयर". मैंने  उसे  इग्नोर  करते  हुए सिर्फ ये कहा - मुझे नहीं लेना तम्हारा कार्ड और रोज़, रखो इसे अपने पास. उसने  कहा - सोच लो, तुम पहली हो..., बाद में अफ़सोस मत करना. मैंने दुबारा मना  किया  उसने  मेरा  हाथ  पकड़  लिया  और  बोला  ठीक  है  मत  लो. वो  ग्रीटिंग  और  रोज़  नीचे  फेंक कर  चला  गया. अगले दिन वो फिर मुझे खिड़की के उस पार दिखा. सुबह के  कोहरे के साथ वो और ज्यादा अच्छा लग रहा था. वो मुझसे नाराज़ नहीं था क्योंकि उसे पता था उसके जाने के बाद मैंने ग्रीटिंग और रोज़ उठा लिया था. रात  को  जब  सब  सो  गए  तो   मैंने  चुपके  से  बैग  में  से  ग्रीटिंग  निकाला  और  रोज़  को  बड़ी  शान  से  "किस"  किया . ग्रीटिंग  खोलते   के  साथ  ही  मेरी  तीसरी  तितली  के  साथ  हज़ारो -लाखों  छोटी  रंग  बिरंगी  तितलियाँ  उड़ने  लगी . उस  ग्रीटिंग  में  ऊपर  लिखा  था  ‘हैप्पी  न्यू  इयर ’ और  नीचे  लिखा  था  ‘  I  love you from lucky’. मैं  ख़ुशी  से  पूरी  रात  नहीं  सोयी  और  रंग  बिरंगी  तितलियों  के  साथ  जुगनू  की  तरह  रात  भर  टिमटिमाती  रही . सुबह  स्कूल जाते वक़्त मैंने महसूस किया "पाँव ज़मी पे नहीं थे मेरे, मैं बिना पंखों के उड़ रही थी". स्कूल  में  अपनी  बेस्ट  फ्रेंड  फातिमा  को  वो  ग्रीटिंग  दिखाया  तो  वो  पागल  हो  गयी . जैसे  बेगाने  की  शादी  में  अब्दुल्लाह  दीवाना .  मैंने  उससे  रिक्वेस्ट  की...  प्लीज  ये  ग्रीटिंग  अपने  पास   रख  ले ,मेरे घर  में  किसी  ने  देख  लिया  तोह  ज्वालामुखी  फूट  पड़ेगा . मैंने  उसे सोफ्टी  की  तरह  सॉफ्ट  लहजे  में  कहा , तेरा  खुद  का  रूम  है  तू  इसे  किसी  कोने  में  छुपा  कर  रख  देना  प्लीज . वो  ग्रीटिंग  रखने  के  लिए  तैयार  हो  गयी . और  रेड  रोज़  मैंने  अपने  पास  रख  लिया. रोज  रात   को  उसे  बैग  में  से  निकाल  कर  निहारती  थी ..
पिछले  3 दिन  से  मैं  स्कूल  नहीं  गयी  और  ना  ही  ट्यूशन . 3 दिन  बाद  जब  मैं  ट्यूशन   गयी  तो  उसने  सबके सामने एक रजिस्टर दिया और कहा - आप यहीं भूल गयी थी.  रजिस्टर मेरा नहीं था  फिर भी मैंने ले लिया. जिसके आखिरी पन्नें पर  उसका  फ़ोन  नंबर  लिखा  था . मैंने  श्याम  को  घर  के  लैंडलाइन  से  उसका नंबर  डायल  किया . मैंने  कहा - हेलो , मैं  बोल  रही  हूँ  ...उसने  कहा - कहाँ  हो  इतने  दिन  से  राभ्या तुम ...स्कूल भी नहीं आई और ना ही ट्यूशन. तुम ठीक तो हो ना, उसके "तुम ठीक तो हो ना " में अपनापन था,.  मैंने  कहा - चाचा जी  की  शादी  है   इसलिए  नहीं  आ  पा  रही  हूँ   और  हां  ग्रीटिंग  और  रोज़ के  लिए थैंक्स . उसने  कहा - सिर्फ   थैंक्स  ? ? मैंने  कहा - जी  अभी  सिर्फ  थैंक्स .... अब  जब  भी  मुझे  मौका  मिलता  मैं  उसे  फोन करती  . एक  दिन  उसका  फोन  आया . फोन  मेरे  छोटे  भाई  ने  उठाया. फिर  मम्मी  से  बोला  पता  नहीं  कौन  बार  बार  फोन कर  रहा  है , कुछ  बोलता  भी  नहीं . मैं  भाग  कर  गयी  और  इस  बार  फोन  मैंने  रिसीव  किया . मैंने  धीरे  से  कहा - अभी  आस  पास  सब  है  बाद  में  बात  करती हूँ. रात  को  मैंने  रिश्तेदारों  के  सोने  के  बाद  उसे  फोन  किया . उसने  बड़े  दुखी  मन   से  बताया  कि  वो  अगले सप्ताह होस्टल  जा  रहा  है . उससे  पहले  मिलना  चाहता  है . मैं  कुछ  सेकंड  तक  कुछ  नहीं  बोली  और  थोड़ी  देर  के  मोन  धारण  के  बाद  मैंने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा  –O.K . 2 दिन   बाद  मैं  बहाना  मार  के  गयी  कि   मुझे  अपनी   फ्रेंड  से  नोटबुक   लेने  जाना  है . मैं  और  वो  ट्यूशन  के  पास  वाले  पार्क  में  मिले . उसने  कहा - "अपना  ख्याल  रखना"  और  मुझे  मिस  करती  रहना   उसके  बाद  खुद  ही  हस  दिया . इस  बार  मन  में  कोई  तितली  नहीं  थी  बल्कि   बहुत  सारी  चींटियाँ   थी  जो  धीरे -धीरे  काट  रही  थी . मैंने  उससे  सिर्फ  इतना  कहा -" वापस  कब  आओगे  उसने  कहा  जल्दी  आ  जाऊँगा  पर  जाने  से  पहले  एक  बार  और  तुमसे  मिलूँगा और हाँ पास से तुम और अच्छी दिखती हो . उसने  मुझे  गुलाबी रंग  की  पैकिंग  वाला  गिफ्ट  दिया  और  चला  गया. मैंने  घर  आ   कर  उस  गिफ्ट  को  खोला, उसमे  एक  प्यारी  सी  कांच  की  गुड़ियां  थी . जो  गाना  भी  गाती  थी . मैंने  घर  पर  बताया  की  ये  गुड़ियां  मुझे  मेरी  स्कूल  वाली  फ्रेंड  ने  दी  है , वो  कहीं  जा  रही  है  इसलिए  मेरा  बर्थडे  गिफ्ट  एडवांस  में  दे  दिया . चाचा जी  की  शादी  करीब  आ  रही  थी  इसलिए  घर  में  रिश्तेदारों   का जमावड़ा लगता जा रहा था .मैं  लक्की  को  इसी  वजह  से  फ़ोन  भी  नहीं  कर  पा  रही  थी . लक्की  ने  मुझे  सेल  फोन  देने  को  कहा  था  पर  मैंने  मना  कर  दिया  था  अब  अफ़सोस  हो  रहा  था . उस  दिन   मैं  अपनी  बुआ   की   लड़की   के  साथ  शादी  की  शोपिंग  करने  बाज़ार  गयी थी . मैं  उदास  थी . मेरा  कहीं  मन  ही  नहीं  लग  रहा  था . बाज़ार  में  किसी  ने  मुझे  आवाज़  दी  “ राभ्या “.. मैंने  पीछे  मुड़  कर  देखा . आवाज़  लक्की  ने  लगाई  थी . वो  मेरे  पास  आया  और  बोला  सुनो  1 मिनट ..मेरी  बुआ  की  लड़की  ने  भौंहे   चढ़ाते  हुए  मेरी  तरफ  देखा . मैं  डर  गयी . क्युकी  वो  मुझसे  बड़ी  थी  और  कॉलेज  में  पढ़ती  थी . मुझे  पता  था  इसे  मेरे  और  लक्की  के  बारे  में  पता  चला  तो  ये  पक्का  घर  में  ढ़न्ढोरा पीट  देगी . इसलिए  मैंने  लक्की और अपने आप को बचाते    हुए  कहा  “ कौन  हो  तुम ”? लक्की  अचम्भें में  था  वो  बोला - पागल  हो  क्या .. मुझे  नहीं  जानती . मैंने  अपनी  बुआ  की  लड़की  से  कहा  मैं  सच  में  इसे  नहीं  जानती  पता  नही  कौन  है  ये . बुआ  की  लड़की  ने  मेरा  हाथ  पकड़ा  और  मुझे  ले  जाने  लगी , लक्की  ने  जोर  से  कहा  –मैं और राभ्या  एक   ही  ट्यूशन  में  पढ़ते  है . जानती  है  राभ्या  मुझे ....नालायक को उसके सामने ये सब बोलना जरुरी था मेरी नौंका उसी पागल ने  डिबोयी जो खुद नौंका का चालाक था . अब  मेरी  बुआ  की  लड़की  को  यकीन  हो  गया  कि  मेरा और लक्की का जरूर कोई सीन है. रास्ते  में  मैंने  उस  बुआ  कि  लड़की  की   बच्ची  से  बहुत  रिक्वेस्ट  की - कि वो  ये  सब घर  पर  ना  बताये . लेकिन  उस  चपाती  ने  घर  आ  कर  सबसे  पहले  अपनी  मम्मी  को  यानी  मेरी   बुआ  को  फिर  अपने  पापा  को  और  फिर  मेरे  मम्मी  पापा  को  बता  दिया . मैं  अपराधी  की  तरह  सबके  सामने  खड़ी थी . बुआ  ने  बड़े  गर्व  से  कहा  हमारी  लड़की  गार्गी  कॉलेज  में  है  लेकिन  मझाल   है  आज  तक  किसी  लड़के  को  जानती  हो . मन किया कह दूँ ..." जाके चेक अप करवाओ इसका कहीं लेस्बियन तो नहीं..." बहुत डांट खायी ,उस दिन सब कुछ हारा हुआ महसूस कर रही थी.  मम्मी    पापा  ने  बाद  में  मुझे  बहुत   समझाया . मैंने   रात  को  जी  भर  के अपने सिरहाने को रो- रो के भिगोया. उस दिन के बाद वो मुझे कहीं नहीं दिखा ना ही स्कूल की खिड़की के पार ना ही ट्यूशन  में . लक्की होस्टल  चला  गया था. फातिमा  बार -बार  कहती  रही  ग्रीटिंग  वापस  ले  ले  पर  मैंने  नहीं  लिया . मेरे  पास  उसकी  दी  हुई  कांच  की  गुड़ियां  थी , एक  मुरझाया  हुआ  रेड  रोज़े  था जो  अब  किताब  में  रखे -रखे  काला  हो  चुका  था ...

2 साल  बाद  जामिया  यूनिवर्सिटी  के  बाहर  मुझे  “वो ” दिखा . मैंने  चीखते  हुए  कहा  “ओये लक्की ”. वो  मुड़ा  और  हम  फिर  मिले . मै  सेकंड इयर में थी और वो  कॉलेज के master  in  chemistry में  एडमिशन  लेने  आया  था .


मम्मी-पापा की वेडिंग


प्लेन रोटी 4 रूपए, बटर रोटी 6 रूपए नहीं नहीं नहीं ...पार्टी में मेहमानों को रोटी परोसते हुए अच्छा नहीं लगेगा इसलिए मैंने रोटी से नान की तरफ जाना बेहतर समझा. लेकिन मैं एक दुविधा में थी नान मेरे बजट से कही ज्यादा था. प्लेन नान था 12 रूपए और बटर नान 22 रूपए अब भला मैं मेहमानों को बिना बटर का नान कैसे खिला सकती थी. चलो बटर नान तक तो बात सही थी पर पनीर वो भी शाही, उसके लिए मैं तैयार नहीं थी. इस वजह से अपने छोटे बेहेन भाइयों से बहुत देर तक बहस चलती रही. उस दिन सबसे ज्यादा अफ़सोस हुआ. काश मुझे स्वादिष्ट खाना बनाना आता तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता. पनीर 200 रूपए किलो, प्याज 80 रूपए किलो ऊपर से टमाटर मसालों की आफ़त अलग से. हम सब की पॉकेट मनी कम पड़ रही थी.
दरअसल उस दिन हमारे प्यारे मम्मी पापा की पच्चीसवीं वेडिंग एनिवर्सरी थी. और हम चार बेहेन भाई मिल कर एक सरप्राइज पार्टी करने वाले थे. एनिवर्सरी पार्टी की तैयारियों में हम काफी दिनों से जुटे थे. इसलिए भाई को बार बार मेनू के प्राइज देखने के लिए भेजा जा रहा था. पार्टी का सारा खाना खुद बनाए या बाहरसे आर्डर करे ये तय करने में हमे पूरे दो दिन लगे. भाई और छोटी सिस्टर ज़िद करने लगे की हम एक फोटोग्राफर भी बुक कर रहे है काफी मशक्कत के बाद मैंने सबको मना लिया कि कोई फोटोग्राफर नहीं आएगा. मैंने कहा- मेरी प्रतिभा उर्फ़ टैलेंट से तुम सब वाकिफ़ नहीं हो. मैं एक अच्छी फोटोग्राफर हूँ आखिर कॉलेज में मैंने भले कुछ सिखा हो या ना सिखा हो कम से कम फोटोग्राफी तो मैंने सीख ही ली हैऔर रही बात कैमरे की तो वो मैं अपने किसी फ्रेंड से ले लूंगी. इसलिए वेडिंग एनिवर्सरी में फोटोग्राफी की जिम्मेदारी मेरी थी. अब भी बजट हाथ से निकले जा रहा था शाही पनीर, नान, छोले-चावल, गाज़र का हलवा, रायता और एक मिक्स सब्जी का मेनू तय करने के बाद हम डेजर्ट पर पहुंचे. डेजर्ट में एक वनिला आइसक्रीम और बटर स्कॉच आइसक्रीम के अलावा काले- सफ़ेद रसगुल्ले भी थे. मेनू के आइटम जैसे जैसे बढ़ते जा रहे थे हमारे दिलों की धड़कन और बजट का रायता दोनों फैलते जा रहे थे. कैसे होगा सब. हम मम्मी पापा को पच्चीसवीं सालगिरह पर एक्सपेंसिव गिफ्ट्स भी देने वाले थे. मेरे दिमाग़ ने अपने घोड़े दौडाये और मुझे जबरदस्त आईडिया आया. हमारी छोटी चाची किस दिन काम आयेंगी. मैं चाची के पास गयी और उन्हें पूरा सीन विस्तार से समझाया. और उनसे हम्बल रिक्वेस्ट की, कि सरप्राइज पार्टी को सरप्राइज बना रहने दे. छोटी चाची के खाने के चर्चे हमारे खानदान में दूर दूर तक थे इसलिए खाना उनसे बनवाने का सोचा. हमने सारा खाने का समान उनको ला कर दिया. और नान तो बाहर से ही आने वाले थे वो भी गरमा-गर्म.केक भी आर्डर हो गया, खाने का जुगाड़ भी हो गया, मम्मी -पापा के लिए गिफ्ट्स भी ले लिए, मेहमानों को आमंत्रित भी कर दिया. और उन्हें सचेत भी कर दिया की मम्मी-पापा को कृपया इस पार्टी के बारे में कुछ ना बताये.

एक परेशानी थी वो ये कि पापा की उस दिन सन्डे की छुट्टी थी. हमने बड़ी मन्नतें करके दोनों को बाहर जाने के लिए राजी कर लिया और राजी भी कहा के लिए हुए मंदिर के लिए. हमने कहा अच्छे से ज्यादा से ज्यादा समय लेना मंदिर के दर्शन में. उसके बाद रंग- बिरंगी लड़ियों और बेलून से पूरा घर सजाया. मैं और सिस्टर वहां छोटी चाची के साथ खाना बनाने में उनकी मदद कर रहे थे और यहाँ दोनों भाई अपने दोस्तों के साथ घर सजा रहे थे. उस दिन परिवार की पॉवर का अंदाज़ा हुआ. मिल कर हम कुछ भी कर सकते है. खैर शाम तक मेहमान चुके थे खाना रेडी था केक आने ही वाला था और मम्मी-पापा भी. एक बात बताना तो भूल ही गयी हमने दो बड़ी बड़ी गुलाब के फूलों की माला और रिंग्स का भी अरेंजमेंट किया था. मेरा कैमरा भी रेडी था. मम्मी पापा ने जैसे ही घर में एंटर किया हमने फूल बरसाने शुरू किये. मैंने देखा था सभी मेहमानों और सजावट को देख के मम्मी की आँखों में आंसू झलक आया था. पता नहीं ये मम्मियां भावुक क्यों हो जाती है. पापा के चेहरे पर भी ख़ुशी साफ़ झलक रही थी. इतना ही नहीं मम्मी-पापा को बिल्कुल दूल्हा-दुल्हन की तरह सजाया भी गया था.
सब बहुत खुश थे. मम्मी-पापा ने एक दूसरे को रिंग पहनाई उसके बाद वर मालाएं. उनको ढेर सारे गिफ्ट्स भी मिले. दादा-दादी जी, बड़े चाचा-चाची, छोटे चाचा -चाची, बुआ, आंटी- अंकल सब आये थे . उस दिन एक बात समझ में आई. जो लोग कहते है ना की वो सुकून चाहते है और अलग रहना चाहते है वो सभी गलत है. उस दिन मुझे अपने परिवार और उसके साथ की ख़ुशी का अंदाज़ा हुआ. अलसी ख़ुशी अपनों के साथ में ही है. अब मैं गर्व से कह सकती हूँ " मैं जॉइंट फेमिली में रहती हूँ" मुझे अपने भाई बहन और फेमिली पर बहुत गर्व था मम्मी-पापा को अपने बच्चों पर.

बस कुछ ऐसा ही था वो दिन .....