Saturday, November 5

सोच क्या हैं ? ? ?

 सोच क्या है ? यह सोच कर भी क्या फायदा ....अफ़सोस होता है कभी खुद की तो कभी दूसरों की सोच पर. 
परिवर्तन प्रकृति का नियम है. प्रकृति के इसी नियम  के चलते आज हमारे रहन- सहन और भाषा आदि में इतना बदलाव आया है...तो फिर अब तक हमारी सोच क्यों नही बदली ? ? 
   सभी का कहना है कि शिक्षा मानव के  मानसिक स्तर का विकास करती है उसे दूसरों से परे एक समझदार इंसान की श्रेणी में खड़ा करती है. परन्तु ऐसा देखने को नही मिलता. मैंने कई बार उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके ऐसे लोगों को देखा है जो रहन सहन और सुख सुविधाओ में सबसे आगे है लेकिन उनकी सोच आज इक्कीसवी सदी में भी  बहुत छोटी और तुच्छ है. आज भी लोग जातिवाद में विश्वास रखते है आज भी लोग छुआछूत करते है और ऐसी सामाजिक बुराइयों  को बढावा देते हैं. 
     हम टेक्नोलोजी में भले ही बहुत  आगे निकल गये हो  पर सबसे महत्वपूर्ण इस सोच का विकास कौन करेगा? ? 
वैसे तो हम श्री राम के आदर्शों पर चलते है तो  फिर हम ये क्यूँ  भूल  जाते है कि भगवान् श्री राम ने भी सबरी के जूठे बैर खाए थे. जब भगवान् अपने बच्चों में कोई फर्क नही करते तो  हम एक दूसरे में अंतर क्यूँ रखते हैं  क्या  हम भगवान् से भी बड़े है ? ?
     जबकि हमे चाहिए कि हम अपने घर परिवार में  अपने आस पास सबको  ये बताएं  कि इस दुनिया में केवल दो ही प्रकार के लोग  हैं एक अच्छे और दूसरे बुरे.....लेकिन नहीं हमें बचपन से ही ये तालीम दी जाती है कि हम दुसरो से श्रेष्ठ हैं हम .....इस जाति  के हैं हम ये हैं .....हम वो हैं .... 
      मेरा तो मानना हैं कि हम सभी को अपने नाम के बाद सर नेम नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे एक दुसरें  में  भिन्नता आती है हमे तो बस एक अच्छा इंसान बनने कि कोशिश करनी चाहिए.......
        और अपनी पहचान इस रूप में स्थापित करनी चाहिए ..

 मैं एक भारतीय हूँ और इंसानीयत है मेरा धर्म.....  
     
          

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